Wednesday

सत्संगी विचार का प्रभाव

एक दिन नामदेव से उनकी मां ने कहा,'बेटा, जरा दवा बनाने के लिए आंवले के वृक्ष की थोड़ी सी छाल तो उतार लाओ। मुझे एक आवश्यक दवा बनाने के लिए उसकी आवश्यकता है।' मां का यह आदेश मिलते ही नामदेव आंवले के वृक्ष की खोज में निकल गए। कुछ देर बाद जब वह आंवले के पेड़ की छाल उतार कर घर लौटने लगे तो रास्ते में उन्हें एक महात्मा मिले।
नामदेव ने उन्हें श्रद्धा से झुक कर प्रणाम किया। महात्मा ने पूछा,'नामदेव, यह क्या है हाथ में?' नामदेव ने उत्तर दिया,'दवा बनाने के लिए आंवले के वृक्ष की छाल उतार कर लाया हूं।' महात्मा ने कहा,'क्या तुम्हें पता नहीं है कि हरे पेड़ को क्षति पहुंचाना अधर्म है? वृक्षों में भी तो जीवन होता है। इन्हें देवता मान कर पूजा जाता है। वैद्य जब किसी वृक्ष की पत्तियां तोड़ते हैं तो पहले हाथ जोड़ कर यह प्रार्थना करते हैं कि दूसरों के प्राण बचाने के उद्देश्य से ही आपको यह कष्ट दिया जा रहा है। यह हमारी संस्कृति का विधान है।'
नामदेव इस बात से बहुत प्रभावित हुए। घर पहुंच कर उन्होंने छाल मां को दे दी और एक कमरे के कोने में बैठ कर तेज धार वाले चाकू से अपने पैर की त्वचा छीलने लगे। उनके पैर से खून बहते देखा तो मां ने पूछा,'तू यह क्या कर रहा है बावले?' उन्होंने जवाब दिया,'महात्मा ने कहा था कि पेड़ों में जीवन होता है। मैं पैर की त्वचा उतार कर देख रहा हूं कि क्या त्वचा उतारने में दर्द होता है?' यह सुन मां ने बेटे को छाती से लगा लिया।
वह समझ गईं कि बेटे पर सत्संगी विचारों का प्रभाव पड़ रहा है। आगे चल कर तो नामदेव स्वयं संत बन गए। उन्होंने कण-कण में भगवान के दर्शन किए। वह हमेशा यह ध्यान रखते थे कि पेड़ तो पेड़, किसी छोटे जीव को भी कोई क्षति न पहुंचे।

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