एक दिन एक जज साहब अपनी कार से अदालत जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक कुत्ता नाली में फंसा हुआ है। वह बुरी तरह छटपटा रहा है। उसमें बाहर निकलने की छटपटाहट है, किंतु प्रतीक्षा भी है कि कोई आ जाए और बाहर निकाल दे। जज साहब ने तुरंत कार रुकवाई और पहुंच गए उस कुत्ते के पास। उनके दोनों हाथ नीचे झुके और झुक कर उन्होंने उस कुत्ते को निकालकर सड़क पर खड़ा कर दिया। सेवा वही कर सकता है जो झुकना जानता हो। मगर बाहर निकलते ही उस कुत्ते ने एक बार जोर से सारा शरीर हिलाया और पास ही खड़े जज साहब के कपड़ों पर ढ़ेर सारा कीचड़ लग गया।
कपड़ों पर कीचड़ के धब्बे लग गए पर जज साहब घर नहीं लौटे। उन्हीं वस्त्रों में पहुंच गए अदालत। सभी चकित हुए, किंतु जज साहब के चेहरे पर अलौकिक आनंद की अद्भुत आभा खेल रही थी। वे शांत थे। लोगों के बार-बार पूछने पर बोले, 'मैंने अपने हृदय की तड़प मिटाई है, मुझे बहुत शांति मिली है।'
दूसरे की सेवा करने में हम अपनी ही वेदना मिटाते हैं। दूसरों की सेवा हम क्या करेंगे, सचाई यह है कि उसके माध्यम से हम अपने अंतरंग में ही उतरते हैं। स्वयं को ही परिमार्जित करते हैं। एक हाथी जितना निकलने का प्रयास करता, उतना अधिक कीचड़ में धंसता जाता था। उसके निकलने का एक ही मार्ग था कि कीचड़ सूर्य की गरमी से सूख जाए।
इसी तरह हम और आप भी संकल्पों-विकल्पों के दलदल में फंस रहे हैं। अपनी ओर देखने का अभ्यास करो तब अपने आप ही ज्ञान की किरणों से यह मोह की कीचड़ सूख जाएगी। बस अपनी सेवा में जुट जाओ, अपने आपको कीचड़ से बचाने का प्रयास करो।
हम सबके लिए जियें तो फिर न युद्ध का भय होगा, न असुरक्षा की आशंका, न अविश्वास, न हिंसा, न संग्रह, न शत्रुता का भाव। सारे निषेधात्मक भावों की अस्वीकृति जीवन निर्माण का नया पथ रोशन करेगी। अध्यात्म के क्षेत्र में अकेले जीने की बात आत्मविकास का एक सार्थक प्रयत्न है, क्योंकि वहां शुद्ध आध्यात्मिक चिंतन रहता है कि व्यक्ति अकेला जनमता है, अकेला मरता है। यहां कोई अपना-पराया नहीं। सुख-दुख भी स्वयं द्वारा कृत कर्मों का फल है।
Saturday
चेहरा नहीं, श्रेष्ठ चरित्र चाहिए
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