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जीवन के आध्यात्मिक नियम पता हों तो हम भटकने से बच सकते हैं


हमारे जीवन में जो भी हो रहा है वह बहुत अच्छा हो सकता है या कभी कुछ ऐसा भी हो सकता है जो ज्यादा अच्छा न हो। तब मन में प्रश्न उठता है कि हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? मन कहता है कि हमने तो कभी किसी के साथ गलत नहीं किया। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से सारे काम किए। स्वाभाविक ही मन में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है कि हमारे अच्छे होने के बावजूद हमें उतनी सफलता नहीं मिल रही जितने की उम्मीद थी। फिर भी यह एक छोटी समस्या होती है। दूसरी इससे बड़ी समस्या यह पैदा हो जाती है कि आसपास कुछ ऐसे लोग दिख जाते हैं जो उतनी मेहनत नहीं करते जितनी हम करते हैं। वे ईमानदार भी नहीं होते। इसके बाजूद वे तमाम मामलों में हम से ज्यादा सफल होते हैं।
इससे यह सवाल और घनीभूत हो जाता है कि आखिर यह कौन तय कर रहा है कि किसे ज्यादा सक्सेस मिले। जो तय कर रहा है वह ज्यादा सही नहीं लग रहा। अगर वह सही होता तो मेरी मेहनत और ईमानदारी का जायज इनाम मुझे जरूर मिलता। जब जवाब नहीं मिलता और ऐसे ही उदाहरण आगे भी मिलते रहते हैं तो धीरे-धीरे यह धारणा मन में बैठ जाती है कि जीवन में सफल वही होता है जो टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर चलता, गलत कार्य करता है। उसके बाद हम भी कुछ ऐसे-वैसे कार्य करने लग जाते हैं। नतीजा क्या हुआ? इससे खुशी तो मिली नहीं, सवालों के जवाब भी नहीं मिले और हम रास्ता भी भटक गए।
तो यह जरूरी है कि जो कुछ हमारे साथ हो रहा है, जो सवाल हमारे मन में उठ रहे हैं, उनके सही जवाब हमें मिलें। अगर जवाब होगा तो मन में कोई संदेह नहीं होगा और हम रास्ता भी नहीं भटकेंगे। हां जवाब पक्का होना चाहिए। आपने देखा होगा कि हाथ की कोई वस्तु अगर आप ऊपर की ओर फेंकते हैं तो वह थोड़ी देर ऊपर जाने के बाद वापस नीचे की तरफ आती है। लेकिन उस पर मन में सवाल या संदेह नहीं आते। वजह यह है कि गुरुत्वाकर्षण का नियम आप जानते हैं। इसलिए कोई सवाल या किसी संदेह की गुंजाइश ही नहीं बनती।
जैसे हमें साइंस के सारे नियम पता हैं और हम उन्हें व्यवहार में भी लाते हैं वैसे ही अगर हमें जीवन के आध्यात्मिक नियम मालूम हों और उन्हें हम व्यवहार में लाते रहें तो न तो जीवन की घटनाओं को लेकर हम कन्फ्यूज होंगे और न ही ऐसे सवाल हमारे मन में उठेंगे जो हमें भटका दें। उदाहरण के लिए कर्म का नियम हमें बताता है कि हमें वैसा ही फल मिलता है जैसे हमारे कर्म रहे हैं। अहम यह नहीं है कि हम किसी गुरु को मानते हैं या नहीं। असल बात यह है कि हम इन नियमों की समझ हासिल करते हैं या नहीं।

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