Wednesday

सत्य सभी के अंदर है............

लोग समझते हैं कि भगवान एक विचित्र पहेली है। कोई कहता है, भगवान ऊपर है। कोई कहता है मंदिर, मस्जिद अथवा गुरुद्वारे में है। कोई कहता है भगवान है ही नहीं। लेकिन सत्य यह है कि भगवान हम सब के अंदर है। उसी ने हम सब को दिया है अनुभव और विवेक। अनुभव को छोटा-मोटा मत मानिए। किसी को यह समझाना पड़े कि हवाई जहाज में बैठने का क्या आनंद है, तो उसके लिए मोटी पोथी लिखनी होगी, तरह-तरह के चित्र दिखाने पड़ेंगे। परंतु अगर उसी व्यक्ति को कुछ पलों के लिए एक बार सीधे हवाई जहाज में बैठा दें, तो उसे आसानी से सब समझ में आ जाएगा। यह है अनुभव। जिस चीज का हम अनुभव नहीं कर सकते हैं, उसके लिए किताब पढ़नी होगी, दूसरों से पूछना होगा।

चंद्रमा पर सब लोग नहीं जा सकते। कम से कम फिलहाल ऐसा संभव नहीं हैं। चंद्रमा पर जाने पर क्या-क्या होता है, यह हम किताब में ही पढ़ कर अथवा दूसरों से सुन कर ही जान सकते हैं। उसका अनुभव नहीं कर सकते। पर जिस चीज का हम अनुभव कर सकते हैं, अगर उसको भी हमने सिर्फ किताबों में ही पढ़ा, तो उसकी कोई तुक नहीं।

खाना बनाने वाले बहुत हैं, और जो खाना बनाता है उससे हम यह चाहते हैं कि वह तरह- तरह के व्यंजन तैयार करे। पर अगर कोई ऐसा मिल जाए जो कहे कि हम पत्थर की सब्जी बनाएंगे आपके लिए, तो इसमें कोई तुक नहीं है। अगर यह पत्थर की सब्जी बना भी दे तो उसे खा थोडे़ ही सकेंगे। अगर खा भी लिया तो पेट में गड़बड़ होगी, क्योंकि पेट को वह चीज चाहिए जो वह पचा सके। नई-नई चीजों से मतलब है आंख को और जीभ को, पर पेट को मतलब है कि उसे पचा सकूंगा या नहीं। इस तरह पेट का सत्य जीभ के सत्य से अलग है।

एक सत्य और भी है। आज जब लड़की का जन्म होता है तो लोग कहते हैं, अरे इसको दहेज देना पडे़गा। इस तरीके से सोचने वाले कई लोग हैं। उनके लिए यह सत्य है। पर एक समय ऐसा आएगा कि स्थिति बदल जाएगी। दहेज लड़के वाले को देना पड़ेगा। वह आने वाले समय का, भविष्य का सत्य होगा।

एक समय आएगा कि बैलगाड़ी नहीं रहेगी। आज बैलगाड़ी का नाम सुन कर आपको समझ जाता है कि वह क्या होती है। बैल और गाड़ी इन दो चीजों को हमने देखा है। परंतु एक ऐसा समय होगा, जब वह लुप्त हो चुकी होगी। तब नहीं समझ पाएंगे। तब पूछना पड़ेगा, क्या होती है बैलगाड़ी?

आज जिसको आप सत्य मान रहे हैं, इस पृथ्वी पर हमारा होना, नाते-रिश्ते, वे कार्य जो हम संसार में करते हैं, इन सबको हम सत्य माने जा रहे हैं। पर इनमें से कोई भी पूरा सत्य नहीं है। यहां होना भी थोड़े समय के लिए है। अभी है, हो सकता है कल हो।

पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात।


तो फिर सत्य क्या है? सत्य हम सबके अंदर है, मेरे अंदर, तुम्हारे अंदर। तुम सत्य नहीं हो, सत्य तुम्हारे अंदर है। जैसे पतीले में दाल। दाल को तुम खा सकते हो, पतीले को नहीं खा सकते। तुम्हारे अंदर सत्य है -जो था और तुम्हारे बाद भी रहेगा। तुम यह कर सकते हो कि उस सत्य का अनुभव करने का प्रयास करो। जब अनुभव कर सकते हो तो अनुभव करो। अनुभव करने के बाद फिर हजारों पुस्तकों को पढ़ने की जरूरत नही रहेगी। पढ़ना चाहो, पढ़ सकते हो। लेकिन जो बात स्वयं अनुभव करने में है, उसे पढ़ने-सुनने में कहां? सत्य कहने की चीज नहीं है। सत्य अनुभव करने की चीज है।

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